भारत ने दुनिया को कई महान वैज्ञानिक दिए हैं, लेकिन कुछ नाम इतिहास के पन्नों में खो जाते हैं, जिनका योगदान अतुलनीय होता है। ऐसा ही एक नाम है डॉ. संभूनाथ डे, जिन्होंने चिकित्सा विज्ञान में क्रांतिकारी खोज की और हैजा (Cholera) के असली कारण को दुनिया के सामने उजागर किया।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
डॉ. संभूनाथ डे का जन्म 1 फरवरी 1915 को पश्चिम बंगाल के गोबर्धनपुर में हुआ था। बाल्यकाल से ही वे पढ़ाई में बेहद होशियार थे। उन्होंने कलकत्ता मेडिकल कॉलेज से चिकित्सा की पढ़ाई पूरी की और आगे चलकर जीवाणु विज्ञान (Bacteriology) में शोध कार्य किया।
ऐतिहासिक खोज: हैजा का कारक
बीसवीं शताब्दी में हैजा एक भयंकर महामारी थी, जिससे हजारों लोग हर साल मारे जाते थे। वैज्ञानिक लंबे समय तक इस रोग के कारण को समझ नहीं पा रहे थे। लेकिन 1959 में, डॉ. संभूनाथ डे ने यह साबित किया कि Vibrio cholerae नामक जीवाणु इस बीमारी का असली कारण है। उन्होंने यह भी दिखाया कि यह बैक्टीरिया एक खास प्रकार का विष (Toxin) उत्पन्न करता है, जो आंतों में पानी और लवण के संतुलन को बिगाड़ देता है, जिससे तेज डायरिया और निर्जलीकरण होता है।
दुनिया ने क्यों नहीं पहचाना?
हालांकि, उनकी यह खोज अद्वितीय थी, फिर भी उस समय उन्हें वह सम्मान नहीं मिला, जिसके वे हकदार थे। डॉ. संभूनाथ डे की खोज को बाद में नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिकों ने आधार बनाया और 1980 के दशक में उनकी रिसर्च को पूरी तरह से स्वीकार किया गया। यह विडंबना ही है कि जिस खोज ने लाखों लोगों की जान बचाई, वह लंबे समय तक उपेक्षित रही।
योगदान और सम्मान
डॉ. संभूनाथ डे का योगदान सिर्फ हैजा तक सीमित नहीं था, उन्होंने संक्रामक रोगों पर भी महत्वपूर्ण शोध किए। हालांकि, उन्हें जीवनभर वह अंतरराष्ट्रीय पहचान नहीं मिली, जिसके वे हकदार थे। फिर भी भारत और चिकित्सा विज्ञान के इतिहास में उनका नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा।
निष्कर्ष
डॉ. संभूनाथ डे का जीवन हमें यह सिखाता है कि सच्चे वैज्ञानिक अपने अनुसंधान के प्रति समर्पित रहते हैं, चाहे दुनिया उन्हें पहचाने या नहीं। आज, उनकी खोज के कारण हम हैजा जैसी घातक बीमारी पर नियंत्रण पा सके हैं। भारत को अपने इस सपूत पर गर्व होना चाहिए, जिन्होंने मानवता की सेवा में अपना जीवन समर्पित कर दिया।







